आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में हाल ही में हुए विवाद ने न केवल धार्मिक आस्थाओं को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि राज्य की राजनीति में भी उथल-पुथल मचा दी है। इस विवाद का केंद्र बिंदु प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रसाद, तिरुमाला लड्डू है, जो हिंदू आस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विवाद तब शुरू हुआ जब यह खुलासा हुआ कि लड्डू प्रसाद में इस्तेमाल किए जा रहे घी में पशुओं के फैट (मेद) का उपयोग किया गया था, जिससे धार्मिक और भावनात्मक स्तर पर बड़ा झटका लगा।
पवन कल्याण का हस्तक्षेप
राज्य के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने इस विवाद को लेकर एक बड़ा बयान दिया और अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस घटना को बेहद गंभीर मानते हुए भगवान बालाजी से माफी मांगी और 11 दिनों के प्रायश्चित उपवास की घोषणा की है। उनका कहना है कि वे इस पाप के प्रक्षालन के लिए यह कठोर निर्णय ले रहे हैं, ताकि समाज और भक्तों के बीच धर्म की पुनर्स्थापना हो सके।
पवन कल्याण का कहना है कि तिरुमाला लड्डू, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है, पिछले शासकों की अनदेखी और अनियंत्रित प्रवृत्तियों के चलते अपवित्र हो गया है। उन्होंने इसे हिंदू समाज के लिए एक बड़ा कलंक बताया और कहा कि इसे पहचानने में हुई देरी ने उनके मन को विचलित कर दिया। वे इस बात से आहत हैं कि लड्डू प्रसाद में पशुओं के अवशेषों का इस्तेमाल किया गया, और यह जानकारी पहले से किसी के ध्यान में क्यों नहीं आई।
प्रायश्चित उपवास और दीक्षा
पवन कल्याण ने रविवार को गुंटूर जिले स्थित नंबूर के श्री दशावतार वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में दीक्षा धारण की। यह दीक्षा 11 दिनों तक चलेगी, जिसके बाद वे तिरुमाला में श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करेंगे। उन्होंने भगवान बालाजी से प्रार्थना की कि उन्हें इस पाप के प्रक्षालन की शक्ति प्रदान करें और समाज में धर्म की पुनर्स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठाने में सक्षम बनाएं।
आस्था पर चोट
इस पूरे प्रकरण ने हिंदू धर्मावलंबियों के बीच गहरी नाराजगी पैदा कर दी है। पवन कल्याण ने यह भी कहा कि मंदिर प्रबंधन से जुड़े कर्मचारी और बोर्ड के सदस्य इस गंभीर गलती को पहचानने में विफल रहे, या यदि उन्होंने इसे पहचाना भी, तो वे डर के कारण इसे उजागर नहीं कर पाए। उनका आरोप है कि उस समय के शासक, जिनकी प्रवृत्ति राक्षसी थी, इस अपवित्रता के जिम्मेदार हैं।
तिरुमाला लड्डू विवाद का प्रभाव
तिरुमाला लड्डू की पवित्रता पर सवाल उठने से भक्तों की भावनाएं आहत हुई हैं। इस विवाद ने न केवल धार्मिक आस्था को प्रभावित किया है, बल्कि मंदिर प्रबंधन की पारदर्शिता और जिम्मेदारी पर भी सवाल उठाए हैं। इस घटना के बाद राज्य में मंदिरों और उनके प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ी है, और लोग मंदिर प्रशासन से ज्यादा जिम्मेदारी की उम्मीद कर रहे हैं।