कर्नाटक सरकार ने हाल ही में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को राज्य में बिना अनुमति जांच करने की सहमति देने वाली पुरानी अधिसूचना को रद्द करने का निर्णय लिया है। इस फैसले के बाद अब CBI को कर्नाटक में किसी भी मामले की जांच शुरू करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब राज्य में मुथ्ताल्ला अर्बन डवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) भूमि घोटाले का मामला चर्चा में है, और इसे लेकर राजनीतिक माहौल गर्माया हुआ है। इस फैसले को लेकर कई लोगों का मानना है कि यह एक राजनीतिक कदम हो सकता है, खासकर उस समय जब राज्य में सत्ता संघर्ष और घोटालों को लेकर चर्चाएं तेज हैं।अब सवाल यह उठता है कि राज्य सरकारें केवल CBI पर ही ऐसे प्रतिबंध क्यों लगाती हैं, जबकि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मामले में ऐसा देखने को नहीं मिलता। दरअसल, CBI एक केंद्रीय एजेंसी है जो राज्य सरकार की सहमति पर आधारित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार, कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, और इसलिए राज्य सरकारें अपनी सहमति के आधार पर CBI को मामलों की जांच करने देती हैं। दूसरी ओर, ED मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा से जुड़े मामलों की जांच करती है, जो सीधे केंद्रीय सरकार के अंतर्गत आते हैं और ED को कार्यवाही के लिए राज्य की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि CBI की जांच पर राज्य सरकारें प्रतिबंध लगा सकती हैं, लेकिन ED की कार्यवाहियों पर ऐसा संभव नहीं है।कर्नाटक के इस ताजा निर्णय को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि राज्य सरकारें CBI के दुरुपयोग के आरोपों को लेकर सतर्क रहती हैं, क्योंकि राजनीतिक दल अक्सर CBI के इस्तेमाल को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। वहीं ED की स्वायत्तता और अधिकार क्षेत्र कुछ हद तक राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं, जिस कारण उस पर ऐसा नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता।