रायपुर। छत्तीसगढ़ के पास गौरवान्वित होने के लिए अनेक संपदा है, जिसमें से एक है खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़। कला शिक्षा के लिए एशिया के सबसे पहले और सबसे बड़े संस्थान के रूप में प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ने अनेक प्रतिमान भी गढ़े हैं, जिसके कारण गर्व स्वाभाविक है। लेकिन इसी संस्थान में रहकर कुछ लोग पूरे एक रैकेट की शक्ल में कैसे विश्वविद्यालय को खोखला करने पर अमादा हैं, इसका खुलासा राजभवन को हाल ही में भेजी गई एक शिकायत से हुआ है। अगर शिकायत की मानें तो इसकी नींव आज से लगभग चार दशक पहले रखी गई और गड्ढे पर गड्ढे खोदने के काम किए गए। दुर्ग के अधिवक्ता शरद कुमार दुबे ने राजभवन को यह शिकायत भेजी है। शिकायत के अनुसार पूरा मामला क्या है इस समाचार में आगे पढ़कर जान सकते हैं।
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो मांडवी सिंह के खिलाफ राजभवन में गंभीर शिकायत की गयी है। शिकायत के मुताबिक मांडवी सिंह की कत्थक विभाग में मूल नियुक्ति ही गलत थी, क्योंकि वह निर्धारित योग्यता को पूरी नहीं करती थी। शिकायत में बताया गया है कि मांडवी सिंह की कुलपति नियुक्ति के बाद लगभग आधे दर्जन पदों पर अवैधानिक नियुक्तियां की गयी। दुर्ग के अधिवक्ता शरद कुमार दुबे ने यह शिकायत राजभवन को प्रेषित करते हुए कार्यवाही की मांग की है।
शिकायतकर्ता अधिवक्ता दुबे ने डॉ. माण्डवी सिंह वर्तमान में वह लखनऊ में कुलपति के पद पर पदस्थ हैं। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कत्थक विभाग में प्रोफेसर के पद पर माण्डवी सिंह की पहली नियुक्ति, जो कि लेक्चरर के पद पर हुई थी, वह पूरी तरह नियमों के विपरीत जाकर की गई। विश्वविद्यालय द्वारा 14.03.1984 को कत्थक विभाग हेतु विज्ञापन निकाला गया था। जिसमें आवेदन की अंतिम तिथि 14.05.1984 थी। यह उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर डॉ. माण्डवी सिंह निर्धारित अंतिम तिथि तक व्याख्याता पद हेतु प्राथमिक व अनिवार्य अर्हता को पूर्ण नहीं करती थी। बल्कि प्रोफेसर डॉ. माण्डवी सिंह उस समय तक कोविद पार्ट 2 की परीक्षा में शामिल भर हुई थी और साक्षात्कार के पूर्व अपने परीक्षा परिणाम और अवैधानिक रूप से जुड़वाया गया था जो कि पूरी तरह विधिमान्य सिद्धांतों के विपरीत है।’
शिकायत पत्र में उल्लेखित किया गया है कि ‘माननीय न्यायालय में उस समय के रजिस्ट्रार श्री एस.के गंगाजली ने यह स्वीकार किया कि प्रोफेसर डॉ. मांडवी सिंह अंतिम तिथि तक निर्धारित योग्यता नहीं रखती थी, स्पष्ट है कि प्रोफेसर डॉ. मांडवी सिंह का चयन पूरी तरह नियमों के विपरीत जाकर अवैधानिक रूप से किया गया है। जो कि अपने आप में जाँच का विषय है और यह न केवल अपने लेक्चरर कत्थक विभाग के पद पर बनी रही बल्कि उसी आधार पर नियमों के विरूद्ध जाकर प्रमोशन भी पाती रही और इसी अपने गलत प्रमोशन का लाभ लेते हुए कुलपति के पद भी धारण किया।’
राजभवन को भेजे गए शिकायत पत्र में प्रो डॉ मांडवी सिंह पर अपने करीबियों को गलत तरीके से लाभ पहुँचाने के भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अधिवक्ता दुबे ने अपने शिकायत पत्र में लिखा है, ‘प्रोफेसर डॉ. मांडवी सिंह द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करते हुए ठीक अपनी तरह ही अवैध नियुक्तियाँ की गई, जिनमें प्रमुख रूप से डॉ. मंगलानंद झा, इतिहास विभाग, डॉ. दीपशिखा पटेल, लोकसंगीत विभाग, श्री जे. मोहन, लाईब्रेरी, एवम् अपनी सगी बहन के दामाद श्री विजय सिंह को आर्थिक लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से नियमों के विपरीत जाकर अयोग्य लोगों की नियुक्तियां की गयी।’
अधिवक्ता ने मांग की है कि उपरोक्त वर्णित लोगों की नियुक्ति तथा अवैध रूप से सेवा में रहकर शासन को करोड़ो रूपये की हानि पहुंचाए जाने की विस्तृत एवम् निष्पक्ष जांच करावी जावे, क्योंकि उपरोक्त सभी लोगों की नियुक्ति यू.जी.सी. के नियमों के विरूद्ध नियमित नियुक्ति कर दी गयी है।