छत्तीसगढ़ का गौरव अरुण कुमार शर्मा , पुरातत्त्वीय सलाहकार से पद्मश्री तक का सफर 

रायपुर । अरुण कुमार शर्मा राजनान्दगाँव के कोलियारा निवासी स्व. आनंदधर दीवान के पुत्र अरुण कुमार शर्मा का जन्म 12 नवंबर 1933 को मोहदी (चंदखुरी, जिला रायपुर) में मामा हिंछा तिवारी और लोकनाथ तिवारी के यहाँ हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा पिपरिया (सागर) , मंडला, दुर्ग और बिलासपुर में हुआ। रायपुर विज्ञान महाविद्यालय से बीएससी और सागर विश्वविद्यालय से 1958 में एमएससी किए। कुछ समय बीएसपी भिलाई में केमिस्ट के रूप में कार्य किया। 1959 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की सेवा में सम्मिलित हुए और विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 1992 में अधीक्षण पुराविद के पद से सेवानिवृत्त हुए। 1993-94 में आईजीएनसीए में ओएसडी नियुक्त किए गए। 1995 में कनखल (हरिद्वार) में माँ आनंदमयी आश्रम एवं संग्रहालय की स्थापना में योगदान दिया।
1999 में सिरपुर (छत्तीसगढ़) और मनसर (महाराष्ट्र) में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जगतपति जोशी के साथ पुरस्थलों का उत्खनन आरंभ किया। 2004 में छत्तीसगढ़ शासन के पुरातत्त्वीय सलाहकार बने।
सिरपुर के उत्खनन द्वारा उसके प्राचीन वैभव को प्रकाश में लाने उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया। अयोध्या के विवादित ढांचे के प्रकरण में भी उन्होने लखनऊ उच्च न्यायालय में विश्व हिन्दू परिषद की ओर से जिरह में भाग लिया था। मदकु द्वीप उत्खनन और ढोलकल गणेश के पुनर्स्थापन कार्य उनके मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ।
शर्मा जी बहुत ही अनुशासित और समय के पाबंद रहे। क्षेत्रीय कार्य के प्रति उनकी दृढ़ता और समर्पण उल्लेखनीय है। उनके योगदान को देखते हुए 2016 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

अरुण कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ सरकार के मानद पुरातत्व सलाहकार रहे हैं। वे 1992 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नागपुर से अधीक्षण पुरातत्वविद् के पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में विशेष कर्तव्य अधिकारी के रूप में काम किया और मध्य प्रदेश के झिरी में फ्रांसीसी टीम के सहयोग से चित्रित शैलाश्रयों की खुदाई की। बाद में उन्होंने गुरुदेव सिद्धपीठ, गणेशपुरी की ओर से मुंबई के पास तमसा घाटी का सर्वेक्षण किया और पुस्तक प्रकाशित की। उन्हें भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद द्वारा छत्तीसगढ़ के मेगालिथ पर सर्वेक्षण और रिपोर्ट लिखने के लिए वरिष्ठ फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। बोधिसत्व नागार्जुन स्मारक संस्थान और अनुसंधान केंद्र, नागपुर की ओर से, श्री शर्मा ने 1990 से 1998 तक पूर्वी वाकाटक की राजधानी मानसर में और 2000 से 2004 तक छत्तीसगढ़ के सिरपुर में और बाद में 2005 से 2012 तक छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अपने करियर के दौरान उन्होंने पूरे भारत में, विशेषकर गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू, महाराष्ट्र, लक्षद्वीप, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में स्थलों की खुदाई की और रिपोर्ट प्रकाशित की। शर्मा ने 1990 में सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत फ्रांस का दौरा किया। वह केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड और सदस्य स्थायी समिति के सदस्य रहे।


12-11-1933 को जन्मे शर्मा ने 1958 में सागर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में मास्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की और 1959 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में शामिल हो गए। 1968 में उन्होंने नई दिल्ली से पुरातत्व में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया जहां टॉप करने पर उन्होंने मौलाना आज़ाद मेमोरियल गोल्ड मेडल और कई पुरस्कार प्राप्त की। अपने करियर के दौरान उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उन्होंने पुरातत्व पर 35 पुस्तकें प्रकाशित की हैं।
लोथल और कालीबंगा के पशु कंकाल अवशेषों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने साबित किया कि भारत में घोड़े को पालतू बनाया गया था और सिंधु घाटी के लोग स्वदेशी थे और बाहर से नहीं आए थे।
श्री शर्मा इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में बाबरी-मस्जिद-राम-जन्म-भूमि, अयोध्या मामले में मुख्य गवाह हैं और उन्होंने अदालत की संतुष्टि के लिए साबित किया कि वहां एक श्री राम मंदिर था जिसे ध्वस्त कर दिया गया था। मंदिर तथाकथित अधूरी मस्जिद का मलबा उठाया गया और वही श्री राम का जन्म स्थान था।
श्री शर्मा ने छत्तीसगढ़ के सिरपुर और राजिम में उत्खनन करवाया। हाल ही में जनवरी 2016 में श्री शर्मा ने अपनी टीम के साथ बस्तर क्षेत्र के दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गणेश प्रतिमा को ध्वस्त करने के एक सप्ताह के भीतर पुनर्निर्माण किया।

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