रायपुर(Raipur)छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को संजोते हुए छत्तीस छटा साहित्य कला परिषद के बैनर तले वरिष्ठ रंगकर्मी एवं साहित्यकार विजय मिश्रा ‘अमित’ के व्यंग्य संग्रह ‘कल्लू कुकुर के पावर’ का विमोचन एक भव्य समारोह में रायपुर के प्रेस क्लब में हुआ। इस संग्रह में कुल तैंतीस व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से लेखक ने सामाजिक रीति-रिवाजों, पर्वों में बढ़ती विकृतियों, अंधविश्वास के जाल और बनावटी दुनिया में खोए समाज पर तीखा व्यंग्य किया है।
इस महत्वपूर्ण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ व्यंग्यकार रामेश्वर वैष्णव ने कहा कि व्यंग्य मात्र किसी की निजी आक्रोश या भड़ास का माध्यम नहीं होता, बल्कि यह एक निर्मल हृदय से उपजी रचनात्मकता है। उन्होंने कहा कि हास्य या व्यंग्य वही व्यक्ति लिख सकता है जिसके हृदय में संवेदनशीलता और प्रेम हो। समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ भाषाविद् डॉ. चितरंजन कर ने अपने वक्तव्य में कहा कि एक संवेदनशील व्यक्ति ही साहित्य का सृजन कर सकता है।
विशिष्ट अतिथि, वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में पद्य साहित्य पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जबकि गद्य का स्थान अपेक्षाकृत कम होता जा रहा है। ऐसे समय में ‘कल्लू कुकुर के पावर’ एक नई उम्मीद और विश्वास को जन्म देता है।
समारोह के अन्य वक्ताओं में डॉ. सुरेश देशमुख, डॉ. सुधीर शर्मा और प्रेस क्लब के महासचिव डॉ. वैभव शिव पांडे ने भी अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ केवल कला और संस्कृति का गढ़ नहीं है, बल्कि साहित्यिक नवाचारों का भी एक प्रमुख केंद्र है। ‘कल्लू कुकुर के पावर’ छत्तीसगढ़ी व्यंग्य विधा में एक नई दिशा और दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो निश्चय ही साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
इस साहित्यिक समारोह का रोचक संचालन विकास शर्मा ने किया। समारोह में ‘कलम मितान सम्मान’ से कई वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकारों को सम्मानित किया गया, जिनमें गुलाल वर्मा, दीनदयाल साहू, उमेश मिश्रा, जाबिर कुरैशी, गोविंद पटेल, अनामिका नेताम, प्रसन्न दुबे, सारिका साहू, छबिलाल साहू और विकास शर्मा प्रमुख रूप से शामिल थे। आयोजन की एक खास बात यह भी रही कि अतिथियों का स्वागत छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजनों से सुसज्जित बांस की डलिया द्वारा किया गया। इस अनूठे आयोजन में साहित्य और कला से जुड़े अनेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा का जीवंत प्रमाण था।