कवर्धा जिले के लोहारीडीह में हुई आगजनी और हत्याकांड के मामले में 33 महिलाएं दुर्ग जेल में बंद हैं। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने केंद्रीय जेल दुर्ग का दौरा किया। उन्होंने जेल में बंद महिलाओं से मुलाकात कर उनके बयान दर्ज किए और उनकी स्थिति का जायजा लिया। इस संबंध में आयोग ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है।रिपोर्ट की मुख्य बातें
1. जांच दल की गतिविधियाँ:
किरणमयी नायक ने बताया कि उनके साथ गए जांच दल को जेल के सुपरिंटेंडेंट द्वारा रोका गया, जो कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। रिपोर्ट में जांच दल के निरीक्षण की सभी जानकारी और संभावित कार्रवाई की सिफारिशें शामिल हैं।
2.महिला बंदियों का मेडिकल परीक्षण : रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि दुर्ग जिला जेल में बंद सभी 33 महिलाओं का तत्काल डॉक्टरी मुलाहिजा और उनकी चोटों की वीडियोग्राफी कराई जाए। यह वीडियोग्राफी पूर्व शासकीय अधिवक्ता शमीम रहमान, तहसीलदार क्षमा यदु और डॉ. कीर्ति बजाज की उपस्थिति में होनी चाहिए।
3.पुलिस की पहचान प्रक्रिया: जांच में यह भी अनुशंसा की गई है कि लोहारीडीह में तैनात पुलिस अधिकारियों और बल के सदस्यों की पहचान के लिए शिनाख्ती परेड कराई जाए। इसमें उन पुलिसकर्मियों की पहचान भी शामिल है, जिन्होंने 33 महिलाओं को मारा है।
4. मृतक प्रशांत साहू का मामला: स्व. प्रशांत साहू की मौत के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों, विशेषकर एसपी अभिषेक पल्लव, के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की सिफारिश की गई है।
5.गिरफ्तारी की प्रक्रिया की जांच: आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि बिना सर्च वारंट के महिलाओं के घरों में घुसकर की गई गिरफ्तारी और थर्ड डिग्री का उपयोग करने वाले सभी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए।
6.फोन कॉल और लोकेशन की जांच: 14 से 20 सितंबर 2024 के बीच एसपी अभिषेक पल्लव के सरकारी और व्यक्तिगत मोबाइल के सभी कॉल डिटेल और लोकेशन की जांच की जाए, ताकि यह पता चल सके कि वे लोहारीडीह घटना स्थल पर कब मौजूद थे। जांच पूर्ण होने तक उन्हें निलंबित करने की सिफारिश की गई है।
यह रिपोर्ट मामले की गंभीरता को उजागर करती है और महिला आयोग द्वारा उचित कार्रवाई की आवश्यकता को स्पष्ट करती है। इस प्रकार की घटनाएं न केवल स्थानीय समुदाय के लिए चिंता का विषय हैं, बल्कि ये न्यायिक प्रक्रिया और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भी चुनौती प्रस्तुत करती हैं।