एक अक्टूबर से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में एक नई बिल समाधान प्रणाली लागू हो रही है, जो व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आएगी। इस प्रणाली के तहत, सामान खरीदने वाले व्यवसायियों को अपने खरीदी गए बिलों को जीएसटी पोर्टल पर स्वीकार या रद्द करना होगा। यदि कोई व्यवसायी इन दोनों कार्यों में से कोई भी नहीं करता है, तो बिल लंबित रह जाएंगे। निर्धारित अवधि के बाद, ये बिल अपने आप स्वीकार हो जाएंगे, जिससे सामान खरीदने वाले व्यापारी को नुकसान हो सकता है। यह जोखिम इस प्रकार है कि अगर कोई व्यापारी ऐसे बिल स्वीकार कर लेता है, जिसके लिए उसने सामान नहीं खरीदा है, तो उसे विभाग की ओर से गड़बड़ी के आरोप में कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान में, बिलों को एक-एक करके स्वीकार या रद्द करने की आवश्यकता नहीं थी, जिससे कार्यभार में कमी थी।
‘विवाद से विश्वास’ योजना का महत्व
आज से ‘विवाद से विश्वास’ योजना भी लागू हो रही है, जो आयकर के संदर्भ में पुराने बकाया मामलों के समाधान के लिए है। इस योजना के तहत, करदाता अपने लंबित मामलों का निपटारा कर सकेंगे, जिससे उन्हें पुरानी मांगों को खत्म करने में सहायता मिलेगी। यह योजना करदाताओं को अपने पुराने कर विवादों को सुलझाने का एक अवसर प्रदान करती है, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से राहत मिल सकती है।
अन्य महत्वपूर्ण बदलाव
आयकर के नियमों में भी कुछ बदलाव होंगे। जैसे कि, जीवन बीमा से प्राप्त राशि एवं एजेंटों को दिए जाने वाले कमीशन पर टीडीएस की दर को 5 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है।
इसके साथ ही, शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाले सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स को 0.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 0.2 प्रतिशत कर दिया गया है। एक नवंबर से जीएसटी में 2017-18 से 2019-20 तक की पुरानी ब्याज एवं अर्थदंड की मांगों को खत्म करने की योजना भी लागू की जाएगी, जिसका सीधा लाभ व्यापारियों को मिलेगा। इन बदलावों का उद्देश्य व्यापारियों के कार्यभार को कम करना और कर प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाना है।