, •• वो लड़की ••
एक जर्जर झाला झोपडी को देख
झाड़ू घास से कर देती साफ.
मटके में झिरिया का पानी भरकर
ले आती तीन पाशाण बराबर नाप.
पाषाण चूल्हे में कुछ टहनी कुछ पन्नी
भरकर सुलगा लेती तील्ली से आग.
चूल्हे में मटका में मोटा चावल रखकर
मांड निकाल करती वो भात तैयार.
मांड में पोटली से मिर्ची नमक कर
बांस के दोबित्ते पोले में भर पेज -पखाल.
•• भूख ••
झाड़ियों और पुराने पुआल में
उगे छिपे पुटु को चुनकर.
जंगल के नरवा में पुटु धोकर
पुटु में हल्दी -मिर्च नमक मिलाकर.
और रख दी पुटु को पलाश के
पत्तों के तहो में
और की सिलाई बबुल
के काँटों से..
लकड़ी की झिटिया और मंद मंद आग
पुटु का पनपुरवा पकता,चूल्हे का धीमा ताप
परसा पान में बबूल कांटा
खोपकर बना पत्तल हरा..
भात पेज परोस कर, एक दोना में पुटु
जिसका रंग पीला चोखा गहरा..
••नींद ••
फिर भाई को बोली वो लड़की –
ले आना एक गठरी झींटिया बांस का
अलसाई मैं, सोऊंगी रख गठठर घास का
ज़ब तक खुले ना आँखे मेरी
बैठना,सिरहाने के पास रखे टीले में..
गऊ भागे कही न,बांध देना गेरुआ में
और भगाना बंदर को,ज़ब आये झाले में..
बहन सो गयी इतना कहकर
बांस की बनी पटिया में
तब तक भाई ने बांस कांटे
घास खिलाये गऊ को
और बना ली लाठी टहनिया से..
रचना – दीक्षा बर्मन