रायपुर(Raipur) आज जगद्गुरु शंकराचार्य रायपुर पहुंचे, जहां उन्होंने शंकराचार्य चौक पर गौध्वज की स्थापना की। इसके बाद वे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे और गौध्वज स्थापना यात्रा को संबोधित किया। परम पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि उन्होंने गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने हेतु 22 सितंबर 2024 को अयोध्या धाम में रामकोट की परिक्रमा करके इस ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत की थी। यह यात्रा अब तक पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में जाकर गौ प्रतिष्ठा ध्वज की स्थापना कर चुकी है।
इस ऐतिहासिक यात्रा को एक बड़ी सफलता तब मिली जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के निर्देश पर देसी (रामा) गाय को ‘राज्यमाता’ घोषित किया और केबिनेट के प्रस्ताव की प्रति शंकराचार्य जी के चरणों में अर्पित की।पूज्य शंकराचार्य जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस यात्रा का उद्देश्य भारत से पूरी तरह से गोहत्या का कलंक मिटाना है और गोमाता को राष्ट्रमाता के रूप में प्रतिष्ठित कराना है। उन्होंने भक्तों से कहा कि गो गंगा कृपाकांक्षी गोपालमणि जी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन पवित्र और महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे और बल देने के लिए हम इस अभियान में लगे हुए हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जो लोग गाय को केवल दूध या मांस के रूप में देखते हैं, वे उसके वास्तविक महत्व को नहीं समझते। भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि यज्ञ और हम परस्पर एक-दूसरे के लिए बने हैं। ब्रह्माजी द्वारा आयोजित एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि देवता और मनुष्यों ने आपसी सहयोग से एक-दूसरे को भोजन कराकर तृप्ति प्राप्त की, यही भारतीय संस्कृति का सार है। यज्ञ में गोमाता और ब्राह्मण का विशेष महत्व है, और बिना गाय के पूजा और उपासना अधूरी मानी जाती है। गाय की सेवा 33 करोड़ देवताओं की सेवा के समान है।
उन्होंने महाराज दिलीप की कथा सुनाते हुए बताया कि गुरु वशिष्ठ के आदेशानुसार महाराज दिलीप ने गौसेवा की, जिससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। भगवान राम का अवतार भी इसी पवित्र वंश में हुआ। इसलिए, भगवान को पाना है तो गौसेवा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि भगवान स्वयं कहते हैं, “गवां मध्ये वसाम्यहम्” – मैं सदैव गायों के बीच में निवास करता हूं।
शंकराचार्य ने कहा कि ‘मातीति माता’ – जो सभी को अपने में समाहित कर ले, वही माता है, और गौमाता में यह गुण समाहित है। ललिता सहस्रनाम में भी भगवती को ‘गोमाता’ के रूप में संबोधित किया गया है। गौमाता सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी हैं, और हम सनातनी केवल दूध के लिए नहीं, बल्कि आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गौसेवा करते हैं।